ज़ख्म भरने दे
ज़रा ये ज़ख्म भरने दे।
बधनखों ने दे दिये
हैं ज़ख्म जो गहरे
आज अपनी सोच
पर फिर दर्द के पहरे
ज़रा यह दर्द थमने दे!
सुलगते हैं सवाल
भीतर घुटन है भारी
फूटने को ज्वाल
अन्दर युद्ध है जारी
ज़रा ये पाँव जमने दे
रूक गये तो क्या
मगर हारे नहीं हैं हम
इन्कलाबी गीत है
नारे नहीं हैं हम
ज़रा फिर से संभलने दे।