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ज़रा गुनगुनाते हुए आइएगा / सूर्यपाल सिंह

ज़रा गुनगुनाते हुए आइएगा।
तनिक मुस्कराते हुए आइएगा।

हमें चुप्पियाँ तोड़ने की ज़रूरत,
यहाँ स्वर उठाते हुए आइएगा।

निजा़मेें यहाँ आज बहरी हुई हैं,
उन्हें सच सुनाते हुए आइएगा।

मिला है जिन्हें घाव पर घाव उनको,
हँसाते खिलाते हुए आइएगा।

यहाँ आज दीवार घेरे सभी को,
निकल पथ बनातेे हुए आइएगा।