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ज़रूरी तो कुछ भी नहीं / सुजाता

उम्र के इस मोड़ पर
जब जल्दी सड़ जाने की संभावना वाला फल
दीख जाता है बिना प्रयास
बहुत कोशिश के बाद भी हंसी रुलाई के छोर तक जाने से पहले नहीं रुकती
सीखना चाहती हूँ विश्व की अनेक भाषाएँ
विलुप्त होने की कगार पर खड़े आदिम समूहों की
मुझे कोई नहीं बताता
किसी भाषा के मर जाने के लिए
ज़रूरी है उसकी ज़रुरत का मर जाना?

उम्र के इस मोड़ पर
जब बता सकती हूँ शीशे पर धूल के जमने का वक़्त
दीमक के चुपचाप फैलते जाने के गुप्त स्थान
भटकना चाहती हूँ सारी दुनियाओं में एक सही शब्द के लिए
आखिरी औरत जो बोलती होगी मेरी ज़बान
वही मेरे आने से पहले जानती थी मेरा आना
मेरे उठने से पहले देखने लगी थी सुल्ताना सपने
अवशेष चुनती हूँ उसके
सपनों के मर जाने के लिए
ज़रूरी नहीनींद का मर जाना

उम्र के इस मोड़ पर
जब नए मुहाविरे गढने जितना अनुभव है
बोलना किसी भाषा को नफरत करते हुए उससे
नए किस्म का प्यार है
‘गिरना’ सिर्फ भय है
और भय महज़ भाषा
जो चीखों में तैरती है पुल के दोनो सिरों पर
बीच में खड़ा भय कुछ देर में
कौतुक हो जाता है
ज़रूरी नही है नफरत के लिए
प्यार का बिल्कुल चुक जाना