ज़िन्दगी को जिया मैंने
इतना चौकस होकर
जैसे कि नींद में भी रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़ जाए ।
ज़िन्दगी को जिया मैंने
इतना चौकस होकर
जैसे कि नींद में भी रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़ जाए ।