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ज़िंदगी भर आदमी को आजमाता कौन है / राकेश जोशी

ज़िंदगी भर आदमी को आजमाता कौन है
जब भी हम गिरते हैं तो हमको उठाता कौन है

अब अँधेरा तो हमारी मुट्ठियों में क़ैद है
फिर अँधेरा बन के ये हमको डराता कौन है

इन किसानों की भी वो संसार में सबकी तरह
हाथ में तक़दीर लिखता है, मिटाता कौन है

रास्ते लाचार-से भटके हुए थकते हैं जब
रास्तों को रास्ता फिर से बनाता कौन है

कौन है जो देर तक सोता मिला है आज भी
टूटने से अब भी सपनों को बचाता कौन है

हर किसी को चाहिए सब पेड़, सारी पत्तियाँ
आग लेकिन फिर ये जंगल में लगाता कौन है

हाथ में हथियार ले, लड़ता है हरदम आदमी
हारता कोई नहीं फिर हार जाता कौन है

चाहता है हर कोई गमले में अपने कैक्टस
अब बगीचे में भला सब्ज़ी उगाता कौन है