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ज़िक्र है फिर बाँसुरी का / कुमार रवींद्र

सुनो !
सपनों की कथा में
ज़िक्र है फिर बाँसुरी का

लग रहा है
लौटने वाले सुरों के दिन दुबारा
उधर, देखो, हिल रहा है
झील पर फिर से शिकारा

चीड़-वन में
सगुन-पंछी गा रहा है
गीत पहली पाँखुरी का

बर्फ़ पिघली
थाप देने लगे झरने पत्थरों पर
उठी ऊँची तान है संतूर की
गूँजे दुआ-घर

शाप बीता
हाँ, यहीं से जाएगा घर
यक्ष भी अलकापुरी को

रामधुन- अल्लाहो-अकबर बोल
होंगे सँग हवा में
फिर वही होगी गज़ब तासीर
साधु की दुआ में

रात-भर फिर
गाँव में जलसा चलेगा
नाच भी छप्पन-छुरी का