दुख ने तो सीख लिया आगे-आगे बढ़ना ही
और सुख सीख रहे पीछे-पीछे हटना
सपनों ने सीख लिया टूटने का ढंग और
सीख लिया आँसुओं ने आँखों में सिमटना
पलकों ने पल-पल चुभने की बात सीखी
बार-बार सीख लिया नींद ने उचटना
दिन और रात की पटरियों पे कटती है
ज़िन्दगी नहीं है, ये है रेल-दुर्घटना।
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।