Last modified on 11 अक्टूबर 2011, at 16:29

ज़िन्दगी / मधुप मोहता


इतनी कड़वी कि पी नहीं जाती,
और तौबा भी की नहीं जात।

सांस लेना भी जुर्म है गोया,
ज़िंदगी है, कि जी नहीं जाती।

एक ठहरा हुआ सफर हूं मैं,
एक सड़क, जो कहीं नहीं जाती।

रात भर दिल मेरा जलाती है,
चांदनी अपने घर नहीं जाती।

एक आदत सी बन गई है तू,
और आदत कभी नहीं जाती।

कोई तस्वीर नहीं, तू भी नहीं
बस तेरी याद है, नहीं जाती।

मैं भला ज़िंदगी से क्या मांगूं,
मांगकर मौत भी नहीं आती।