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ज़िन्दगी नेपथ्य में गुज़री / उमाकांत मालवीय

ज़िन्दगी नेपथ्य में गुज़री
मंच पर की भूमिका तो सिर्फ अभिनय है ।

मूल से कट कर रहे
परिशिष्ट में
एक अंधी व्यवस्था की दृष्टि में ।
ज़िन्दगी तो कथ्य में गुज़री
और करनी
प्रश्न से आहत अनिश्चय है ।

क्षेपकों के
हाशियों के लिए हम
दफ़न होते
काग़ज़ी ताजिए हम
ज़िन्दगी तो पथ्य में गुज़री
और मन बीमार का परहेज़ संशय है ।