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ज़िन्दगी बुझौवल / हरदीप कौर सन्धु

 
41
जोड़ -घटाना
जिन्दगी बुझौवल
उमर भर
42
दु:ख जो आता
जीवन को माँजता
आगे बढ़ाता
43
चप्पू न कोई
उमर की नदिया
बहती गई
44
मन में आशा
पिघलने लगता
दुख मोम-सा
45
जीवन कभी
 बने दुःख की नदी
तैरना सीख
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जीवन बना
जल की तलाश ही
मरुस्थल में
47
युग मशीनी
बटन दबाकर
झूलती मुन्नी
48
तेरा ये मेरा
घर का बँटवारा
आँगन छोटा
49
छोड़ें निशान
उखाड़ी हुई कील
कड़वे शब्द
50
कर्म से सजे
सबसे सुन्दर हैं
सर्जक- हाथ