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ज़िन्दगी रहेगी ही / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

ज़िन्दगी रहेगी ही सिलसिला गुनाहों का!
दिल ग़ुलाम होता है फ़ितरती निगाहों का!

और क्या इनाम मिले बेशकीमती फन का,
काम तो तुम्हारा है, नाम बादशाहों का!

माँगना ही है तो, माँग तू फ़कीरों से,
आज के ज़माने में दिल ग़रीब शाहों का!

ये जहाँ परीशाँ है आपके फ़सानों से,
हर अदीब होता है देवता गुनाहों का!

कौन 'सिन्दूर' मान ले तू अज़ीम शायर है,
दिन गए हक़ीक़त के, वक्त है गवाहों का!