एक सुर्ख़ से अंधेरे में 
सूरज की नारंजी थकन समेटे 
दिन रात के आलसी 
अंधेरे उजाले में 
ख़ुदको क़ैद कर लिया मैंने 
ज़िन्दगी के पांव में 
बेड़ियाँ डाल रखी हैं 
बाहर की दुनिया के मंज़र 
मेरे कमरे के अंदर 
जदीद तरीन 
टेक्नोलॉजी से पहुँच रहे हैं 
मैं अपने अंदर की दुनिया 
बाहर के मंज़र में देख रहा हूँ 
पता नहीं क्यूं 
इतना ज़्यादा सोच रहा हूँ 
कि अब इन सांसों की भी 
चहल क़दमी 
मुझको खेलने लगी है 
ज़िन्दगी शायद 
ज़िन्दगी का मतलब 
समझने लगी है॥