Last modified on 11 जुलाई 2011, at 11:42

ज़िन्‍दा इंसान हूँ मैं / अरुणा राय

ज़िन्‍दा इंसान हूँ मैं
 
सोहबत
चाहिए तुम्‍हारी
मुकम्‍मल
 
लाश नहीं हूँ
कि
शब्‍दों के फूल
 
चढ़ाते
चली जाओ...।