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तुम्हारा इस क़दर रुक-रुककर,
भदेस लहज़े में बोलना—
ख़ुद को तसल्ली देने को
फ़क़त यही बच रहा है मेरे पास ।
लेकिन
लहज़ा बदल गया है
और रंगत भी ।
आदी हो जाऊँगा
तुम्हें सुनते रहने का,
तुम्हारे गूढ़ार्थ खोलने का—
टेली-टाइप की क्लिक-क्लैक में,
ब्रिसागो सिगारों से फूटते
धुएँ के कुंडलीचक्रों में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल