मलाबार के चार कम्युनिस्ट किसानों के लिए, जिन्हें अप्रैल 1943 में फाँसी दे दी गई
अस्सलाम, अस्सलाम
अस्सलाम ऐ सुर्ख़ जांबज़ान-ए-कय्यूर<ref>कय्यूर के जांबाज़</ref> अस्सलाम ।
हाँ, बढ़ेगा ज़िंदगी का कारवाने तेज़ गाम-<ref>क़दम</ref>
अस्सलाम !
लेंगे हम लेंगे शहीदों के ख़ून का इन्तेकाम-
अस्सलाम !
अहद<ref>क़सम, प्रण</ref> करते हैं मिटा देंगे ये सूली का निज़ाम-
अस्सलाम !
आले लेनिन आले स्तालिन का ज़िन्दा है नाम-
अस्सलाम !
हाँ, बढ़ेगा ज़िंदगी का कारवाने तेज़ गाम
अस्सलाम, अस्सलाम !
अस्सलाम, ऐ सुर्ख़ जांबाज़ान-ए-कय्यूर, अस्सलाम ।
शब्दार्थ
<references/>