जिनको ठुकरा देती दुनिया, वे आ जाते द्वार तुम्हारे
मैं ठुकराया हुआ तुम्हारा जाऊं किसके द्वार बताओ?
तुमसे अधिक सदय ममता-मय, सारे जग में और कौन है
मेरी पीर निहार न पिघला जबकि तुम्हारा निठुर मौन है
किसके आगे फटी पुरानी यह अपनी झोली फैलाऊं
किसके आगे किस आशा में दूँ मैं हाथ पसार बताओ?
दुनिया की हर गली छोड़ कर आया मैं देहरी तुम्हारी
किन्तु न खोली तुमने मुझ पर अपने घर की बन्द किवारी
एक झरोखे से झांका कह दिया मुसाफ़िर आगे जाओ
आधी रात भला खटकाऊँ किसके बन्द किवार बताओ?
मैंने सोचा था तुम पर चल जायेगा गीतों का टोना
गीत बहुत छलिया होते, कुछ कर दिखलायेंगे अनहोना
किन्तु तुम्हें देखा तो सारे शब्द तुम्हीं में लीन हो गये
कैसे व्यथा सुनाऊँ कैसे कर पाऊं मनुहार बताओ?
मैंने भी चाहा था अपनी चादरिया उजली रख पाऊं
जैसी मुझे मिली थी तुमसे, वैसी ही तुमको लौटाऊँ
पर शिशु सा नटखट मन मेरा, जान बूझ कर माटी से खेला
अधिक सुहाता कंचन से क्यों इसको गर्द ग़ुबार बताओ?
पावनता के तीर खड़े तुम, मैं डूबा आकंठ पाप में
किन्तु कलुष यह गल जायेगा, क्या न तुम्हारे पुण्य-ताप में
तुमने तो इससे भी ज्यादा बोझिल पापों को ढोया है
बांह थाम कर फिर मेरी ही लोगे क्या न उबार बताओ?
अब तो यह अंतिम दरवाज़ा अंतिम भिक्षा अंतिम अनुनय
या तो अभय दान मिल जाये या जीवन का हो जाये क्षय
कब तक जनम मरण की अन्धी गलियां में मैं फिरूँ भटकता
कब तक और उठाऊं सिर पर, माटी के आभार बताओ?
जिनको ठुकरा देती दुनिया, वे आ जाते द्वार तुम्हारे
मैं ठुकराया हुआ तुम्हारा जाऊं किसके द्वार बताओ?