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जाओ बीते वर्ष / सरोज मिश्र

आयु सुनिश्चित निश्चित साँसें।
सीमित है हर कथा कहानी।
जाओ बीते बर्ष तुम्हारा,
इतना ही था दाना पानी।

जाओ बीती सुधियाँ जाओ।
और साथ में बीते पल भी।
यक्ष प्रश्न सब लेकर जाना
और सभी वे उलझे हल भी।
झूठी वे ज्योतिष गणनायें
झूठी सब ग्रह चाल दशायें,
वर्तमान के जगमग अवसर
जिनमें खोये कंचन कल भी।

घुटनो घुटनो बचपन वाली,
भूलें थीं केवल शैतानी।
और अगर ये अब तक जारी
समय कहेगा बस नादानी
जाओ बीते वर्ष तुम्हारा,
इतना ही था दाना पानी।

नहीं चमकता दूर क्षितिज पर,
किस्मत वाला छुब्ध सितारा।
नहीं टूटती स्वयं दुखों की
काले जादू वाली कारा।
डूब रही है नब्ज़, श्वांस की
आवर्ति भी अवरोही क्रम में
स्वयं करो उपचार रुकेगा
पल पल गिरता जीवन पारा।

पतझर केवल ऋतु परिवर्तन
ऋतुयें भी बस आनी जानी।
टूटेगा जब बाँध देखना,
बंधी धार की खुली रवानी।
जाओ बीते वर्ष तुम्हारा,
 इतना ही था दाना पानी।

रेल समय की जिसने छोड़ी,
जीवन भर केवल पछताया।
अंगुल भर था दूर स्वप्न जो
आंख तलक फिर पहुँच न पाया।
रत्ती भर भी नहीं भरोसा
किस्मत की बातों पर मुझको
हाँथ जिन्होंने चुभन सही हों
उपवन उनका ही लहराया।

आगत स्वागत एक शर्त पर,
लिखकर लाना कथा सुहानी।
गुड्डे गुड़िया महल दुमहले
सभी यहाँ हों राजा रानी।
जाओ बीते वर्ष तुम्हारा,
इतना ही था दाना पानी।