ताज्जुब! बुद्धू बक्से को छोड़ नये साल का
खैरमकदम नहीं किया किसी ने
ऋतुराज की कदमबोसी में फूलों का महकना बंद हुआ
झील में उतरकर मछलियों से आंखमिचौनी नहीं की किसी ने
न बच्चों ने जानवरों को देखकर चहक कर ताली बजायी
चिडिया इस बार लौटीं नहीं साइबेरिया से
मंदिर दिन भर उदासी में डूबे सोमवार के दिन
अजान की लंबी टेर से जागा नहीं जुमा
नगरवासियों! क्या तुम्हारे जूतों के तले खो गये
या फिर सुबह नजरा गई किसी डायन से
दुक्ख हमारे इस हद तक भारी कि नींद में टपकता दिखे सेमल से लहू
कठिन है गुजरती सदी फिर भी छूकर देखो तो सही
शब्दों से सोया पड़ा भरोसेदार ताप
ताकत उनमें इस कदर मनमुआफिक कि
सिरजी जा सके एक दुनिया हर कभी
देखो! बच्चों की पतंग पर सवार
सूरज से हाथ मिलाने जा रहे हैं शब्द और तुम चुप!