Last modified on 25 जुलाई 2020, at 13:21

जाड़े-दादा / कमलेश द्विवेदी

जाड़े दादा-जाड़े दादा क्यों आते हो तुम।
हमको सबसे ज़्यादा पीड़ा पहुँचाते हो तुम।

वैसे ही भारी है बस्ता,
फिर ऊनी कपड़े।
मजबूरी में लेकिन इनको,
ढोना हमें पड़े।
कितना बोझ हमारे ऊपर लदवाते हो तुम।
जाड़े दादा-जाड़े दादा क्यों आते हो तुम।

अक्सर नींद हमारी जल्दी,
सुबह न खुल पाये।
फिर स्कूल पहुँचने में भी,
देरी हो जायें।
पापा-मम्मी-टीचर सबसे डँटवाते हो तुम।
जाड़े दादा-जाड़े दादा क्यों आते हो तुम।
प्यारी-प्यारी गर्मी दादी,
हमको भातीं हैं।
आते ही स्कूल हमारे,
बंद कराती हैं।
उतनी छुट्टी नहीं कभी भी करवाते हो तुम।
जाड़े दादा-जाड़े दादा क्यों आते हो तुम।