जाड़े का मौसम / कमलेश द्विवेदी

इतना अधिक अखरता है क्यों जाड़े का मौसम।

स्वेटर पर स्वेटर है फिर भी,
लगती है सर्दी।
सही न जाती है मौसम की,
यह गुंडागर्दी।
हमें सताया करता है क्यों जाड़े का मौसम।
इतना अधिक अखरता है क्यों जाड़े का मौसम।

खेल-कूद सब बंद, निकलना
घर से है दुष्कर।
अर्धवार्षिक इम्तिहान भी,
आ पहुँचे सिर पर।
बच्चों का सुख हरता है क्यों जाड़े का मौसम।
इतना अधिक अखरता है क्यों जाड़े का मौसम।

अच्छा लगता बहुत-रजाई,
में दुबके रहना।
गरम-गरम हो चाय-पकौड़ी,
तो फिर क्या कहना।
तेज़ धूप से डरता है क्यों जाड़े का मौसम।
इतना अधिक अखरता है क्यों जाड़े का मौसम।

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