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जाड़े की धूप / प्रकाश मनु

उजले हंसों की पाँतों-सी
तुतले मुन्ना की बातों-सी,
दिल को सच कितना भाती है
लहर-लहर मन कर जाती है
यह जाड़े की धूप!

पापा का ज्यों नेह-दुलार
भैया का रस-भीगा प्यार,
मम्मी की मीठी चुम्मी-सी
गालों को सहला जाती है
यह जाड़े की धूप!

जैसे एक नन्हा खरगोश
उछल रहा ले मन में जोश,
इधर घूमती, उधर घूमती
झट छज्जे पर चढ़ जाती है
यह जाड़े की धूप!

थोड़ी मूँगफली अब खा लो
चिड़िया-बल्ला, गेंद निकालो,
उछलो, कूदो, दौड़ लगाओ
चुपके-चुपके कह जाती है
यह जाड़े की धूप!