बड़े दिनों बाद निकली है
जाड़े की धूप
बादलों बारिशों कुहासों से
करके भरदम
गुत्थम गुत्थी
गुलाबी नहीं
खेतों में पके धान की
बालियों-सी लहलहाती
सुनहली
बड़े दिनों बाद
मन भी खिला है
मानो
सारे गीले कपड़े
सूख गये हों
अचानक !
बड़े दिनों बाद निकली है
जाड़े की धूप
बादलों बारिशों कुहासों से
करके भरदम
गुत्थम गुत्थी
गुलाबी नहीं
खेतों में पके धान की
बालियों-सी लहलहाती
सुनहली
बड़े दिनों बाद
मन भी खिला है
मानो
सारे गीले कपड़े
सूख गये हों
अचानक !