अभी-अभी तो आसमान साफ़ था
अभी-अभी तो फैला था
सूरज का जादू
न जाने
कहाँ चला गया सूरज
किस खेल में शामिल हो गया ?
और शुरू हो गया
बादलों का जादू
ख़ुश होने लगी
पोलेस्टर की कमीज़ें
पर कारों के चक्के सड़कों पर
दौड़ते रहे
वैसे ही अभिमान से
और सड़क की आत्मा को
आँखों में बसाए
ठिठुरता रहा कवि
किसी अजनबी मकान की दीवार से सटा
जिसके अन्दर से
आती रही निरन्तर
ठहाकों की आवाज़ें
जाड़े की इस बरसात में
ख़ुश भी होते हैं लोग
मैंने देखा और सरपट भागा
मेरा पूरा बदन
बादलों से घिरे आसमान के नीचे
रोता रहा दिन भर
और मैं तलाशता रहा
आग और सूखे कपड़े और एक छत
पूरा का पूरा शहर
मेरे अन्दर
नगाड़े बजाकर हँसता रहा
और मैं मछलियों के
एक बाज़ार में जा पहुँचा
वहीं खड़ा
न जाने कितनी देर से
मेरा एक दोस्त मिला
मैं देख
आश्चर्य से भर उठा
क्योंकि वह मेरा आईना भर नहीं था
मैंने उसके हाथ पकड़े
और खींचता हुआ उसे
पहुँचा उस कुएँ के पास
जिसमें छलांग लगाने की इच्छा से
बुरी तरह पीड़ित रहा था पिछले दिनों
पर हर बार
कुएँ के पाँच पोरीसा पानी में
अपने को पहले से ही उपस्थित पा
अपने दुखों से हल्का हो गया था
कुएँ की जगत पर बैठा था
हमारा एक और दोस्त
जो जीवन का स्वागत
बेहूदी गालियों से करता-करता
थक गया था
मैंने उसे देखा
और आश्चर्य से भर उठा
क्योंकि वह मेरा आईना भर नहीं था
वहाँ से भागा
भागा-भागा जहाँ गया
सब दरवाज़े बन्द मिले
अब मेरे साथ था
एक जुलूस
जिसकी आँखों का तारा धूप थी
जाड़े की यह धूप
मकान थी, रोटी थी
कमीज़ थी
गरीबी की चादर थी
एक जुलूस की शक्ल में मैंने
ख़ुद को झटका दिया
और आसमान से मुँह फेर लिया
जाड़े की यह बरसात
जीने नहीं देती मनुष्य को !
कचहरी मोड़ पर
भिखमंगे की लाश देखकर
हँसती है कार--
अच्छा हुआ जो
समाज का एक कोढ़ गया !
पर जुलूस क्षुब्ध होता गया
पूरी व्यवस्था के खिलाफ़
जिसने अपना पूरा सौन्दर्य
सौंप दिया है भक्तों को
जिसमें ठहाके लगाते हैं लोग
और सड़कों को
सौंप दिया है कीचड़ और पानी
और नंगे क़दमों का ठिठुराव
और गाड़ियों के चक्कों का
असहनीय बर्ताव