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जाड़ोॅ के दिन / प्रदीप प्रभात

जाड़ोॅ के दिन, अमीरोॅ लेली सुखी,
जाड़ोॅ के दिन, गरीबोॅ लेली दुःखी।
जाड़ोॅ मेॅ हाड़ तांय कपकपाय छै।
गरीबोॅ के बोरसी, गेन्दरा जान बचाय छै।
तापै छै आगिन सुलगाय केॅ, काटै छै रात कप कपाय केॅ
अमीर तेॅ तोसक तकिया, ऐजाय गलिया मेॅ
लिपटाय के सुतलोॅ रहै छै, सुरूज रोॅ किरिण उगै तांय
गरीबोॅ केॅ तेॅ पेटोॅ मेॅ भुख रहै छै
यै लेली उठै छै भोरै बिहानै
जाना छै ओकरा कमाय लेॅ।
पेटोॅ के आगिन बुझाय लेॅ
ऊ अमीर जे घरोॅ मेॅ सुतै छै बाँस भर मिलि उगैतांयी
हिनका तेॅ पीठी मेॅ भूख रहै छै
जाड़ा, बरसा आकि गरमी रोॅ दिन रहे।
गरीबेॅ तेॅ जाड़ोॅ सेॅ बचै लेली
खिचड़ी खदकाय केॅ खाय छै
गेन्दरा, गुदड़ी ओढ़ी जान बचाय छै।