बामन वेद पुरान पढ़ै, रज पूतके मो सरिखा नहि कोई।
वैस विसाह बियाह के काजहिँ, शूद्र सदा कगदाव करोई॥
कहे धरनी नर मुक्ति के कारन, मारग पाव हजारमें कोई।
भूलि परे सब आपुहिँ आपको, पाप बढ़ो तन तापते खोई॥29॥
बामन वेद पुरान पढ़ै, रज पूतके मो सरिखा नहि कोई।
वैस विसाह बियाह के काजहिँ, शूद्र सदा कगदाव करोई॥
कहे धरनी नर मुक्ति के कारन, मारग पाव हजारमें कोई।
भूलि परे सब आपुहिँ आपको, पाप बढ़ो तन तापते खोई॥29॥