जाति हुती सखी गोहन में, मन मोहन को, लखिकै ललचानो।
नागर नारि नई ब्रज की, उनहूँ नँदलाल को रीझिबो जानो॥
जाति भई फिरि कै चितई, तब भाव ’रहीम’ यहै उर आनो।
ज्यों कमनैत दमानक में फिरि तीरि सों मारि लै जात निसानो॥
जाति हुती सखी गोहन में, मन मोहन को, लखिकै ललचानो।
नागर नारि नई ब्रज की, उनहूँ नँदलाल को रीझिबो जानो॥
जाति भई फिरि कै चितई, तब भाव ’रहीम’ यहै उर आनो।
ज्यों कमनैत दमानक में फिरि तीरि सों मारि लै जात निसानो॥