जादूगर की जात तुम्हारी ।
मेरी विद्या तुमसे हारी ।।
बड़े सयाने हो मायावी !
अपने मुँह पर चान्द उगा कर
मेरी आँखों में लहरा देते हो
अबुझ प्यार का सागर,
खारे जल में बह जाती हूँ —
मैं व्याकुल बिरहा की मारी !
जादूगर की जात तुम्हारी ।
मेरी विद्या तुमसे हारी ।।
अधरों में मुस्कान बसी है,
मोहन मन्त्र पढ़ा करते हो !
वंशी के स्वर वशीकरण के —
कोमल छन्द गढ़ा करते हो ।
बिना दाम ही नाम तुम्हारे —
मैं बिक बैठी हूँ बनवारी !!
जादूगर की जात तुम्हारी ।
मेरी विद्या तुमसे हारी ।।
सच कहती हूँ, श्याम, तुम्हारे
नैनों में जादू-टोना है,
इनके चलते इसी जनम में,
अब जाने क्या क्या होना है !
आज हुई बदनाम और कल ...
सारा जन्म रहूँगी क्वाँरी ।
जादूगर की जात तुम्हारी ।
मेरी विद्या तुमसे हारी ।।