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जादू का टूटना / गोरख पाण्डेय


आग के ठंडे झरने-सा

बह रहा था

संगीत

जिसे सुना नहीं जा सकता था

कम-से-कम

पाँच रुपयों के बिना ।

'चलो, स्साला पैसा गा रहा है'

पंडाल के पास से

खदेड़े जाते हुए लोगों में से

कोई कह रहा था ।

जादू टूट रहा है--

मुझे लगा--स्वर्ग और

नरक के बीच तना हुआ

साफ़ नज़र आता है

यहाँ से

पुलिस का डंडा

आग

बाहर है पंडाल के

भीतर

झरना ठंडा ।