कवि-फ़िल्मकार बुद्धदेव दासगुप्ता के लिए
एक
जादू शुरू होता है
पहले बत्तियाँ बुझाई जाती हैं
फिर एक प्रतिसंसार
एक नई दुनिया...
अपने जैसी ही शुरू होती है
चिड़ियों की आवाज़
एक पूरा खड़ा पेड़ एक गिलहरी पत्ते का गिरना
हवा का बहना पानी का चलना
बंशी का बजना पृथ्वी का घूमना
सपने जैसा कुछ सच होना
एक कविता पूरी...
अपना पूरा वजूद गढ़ने लगती है
हम जब उसकी साँसों से मिलाकर लेने लगने लगते हैं साँस
उसकी आँखों से देखने लगते हैं दुनिया
शामिल हो जाते हैं अपनी ही एक नई दुनिया में, तब...
जादू शुरू होता है ।
दो
एक कवि है
एक फ़िल्मकार है
एक अच्छा इन्सान है
आप उसके नज़दीक जाइए...
अब, जादू शुरू होता है...।