Last modified on 30 सितम्बर 2009, at 19:31

जानकर अनजान बन जा / हरिवंशराय बच्चन

जानकर अनजान बन जा।


पूछ मत आराध्य कैसा,

जब कि पूजा-भाव उमड़ा;

मृत्तिका के पिंड से कह दे

कि तू भगवान बन जा।

जानकर अनजान बन जा।


आरती बनकर जला तू

पथ मिला, मिट्टी सिधारी,

कल्पना की वंचना से

सत्‍य से अज्ञान बन जा।

जानकर अनजान बन जा।


किंतु दिल की आग का

संसार में उपहास कब तक?

किंतु होना, हाय, अपने आप

हत विश्वास कब तक?

अग्नि को अंदर छिपाकर,

हे हृदय, पाषाण बन जा।

जानकर अनजान बन जा।