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जानकी -मंगल/ तुलसीदास / पृष्ठ 10

।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 10)

रंगभूमि में राम-3
छंद 65 से 72 तक

पुर नर नारि निहारहिं रघुकुल दीपहिं।
 दोषु नेहबस देहिं बिदेह महीपहिं।65।

एक कहहिं भल भूप देहु जनि दूषन।
नृप न सोह बिनु नाक बिनु भूषन। ।

 हमरें जान जनेस बहुत भल कीन्हेउ।
पन मिस लोचन लाहु सबन्हिं कहँ दीन्हेउ। ।

अस सुकृती नरनाहु जो मन अभिलाषिहि।
 सो पुरइहिं जगदीस परज पन राखिहि।।

प्रथम सुनत जो राउ राम गुन-रूपहिं।
 बोलि ब्यालि सिय देत दोष नहिं भूपहिं।।

 अब करि पइज पंच महँ जो पन त्यागै।
 बिधि गति जानि न जाइ अजसु जग जागै।।

अजहुँ अवसि रघुनंदन चाप चढ़ाउब।
ब्याह उछाह सुमंगल गाउब।।

लागि झरोखन्ह झाँकहिं भूपति भामिनि।
कहत बचन रद लसहिं दमक जनु दामिनि।72।

(छंद-9)

जनु दमक दामिनि रूप रति मद निदरि संुदरि सोहवीं।
मुनि ढिग देखाए सखिन्ह कुँवर बिलोकि छबि मन मोहहीं।।

सिय मातु हरषी निरखि सुषमा अति अलौकिक रामकी।
हिय कहति कहँ धनु कुँअर कहँ बिपरीत गति बिधि बाम की।9।


(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 10)

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