(राग सोहनी-ताल दादरा)
जानता हूँ पाप है, पर पाप-रत रहता सदा।
पापसे मैं पृथक् अपनेको न कर पाता कदा॥
दीन मैं असमर्थ, अब तो शरण प्रभुकी आ पड़ा।
अब दयामय एक प्रभुका ही भरोसा है बड़ा॥
(राग सोहनी-ताल दादरा)
जानता हूँ पाप है, पर पाप-रत रहता सदा।
पापसे मैं पृथक् अपनेको न कर पाता कदा॥
दीन मैं असमर्थ, अब तो शरण प्रभुकी आ पड़ा।
अब दयामय एक प्रभुका ही भरोसा है बड़ा॥