जानती थी
क्या होती है प्रतीक्षा,
कैसा होता है दुःख
अवसाद, अँधेरा,
किस क़दर
मूक कर जाता है
किसी उम्मीद का टूटना,
फिर भी
मैंने चुना प्रेम !
जानती थी
क्या होती है प्रतीक्षा,
कैसा होता है दुःख
अवसाद, अँधेरा,
किस क़दर
मूक कर जाता है
किसी उम्मीद का टूटना,
फिर भी
मैंने चुना प्रेम !