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जानत नाहि / शब्द प्रकाश / धरनीदास

जानत नाहिन देव देवाइ, न पाँच पँडाइनिको सुमझौवा।
जानत नाहि न वेद मता, गति नेम अचार सकार नहौवा॥
धरनी नट नाटक चाटक त्राटक तान तनों नहि ज्ञान कथौवा।
मानत है मन साधुकि संगति, जानत है एक राम रमौवा॥19॥