हम आश्चर्य रोपते हैं
उन्हें बड़ा बनाती हैं हमारी इच्छाएं
जैसे मैं अपने बारे में कुछ नहीं जानता
सिर्फ़ यही मैं अपने बारे में जानता हूं
कितना ख़ालीपन पड़ा होता है
हमारे शब्दों के दरमियान
हम उसे छूते हैं और नष्ट कर देते है
जानने के लिए धूप है
नहीं जानने के लिए
ख़ुद से भागती परछाईयां
क़िसी तरह तुम संगीत सीख ही लोगे
लिखना और मिटाना भी
भेद कुछ नहीं रह जाएगा
हर चीज़ इतनी नंगी और बेलौस होगी
कि त़ुम्हारे आंखों की मछलियां
उड़ना चाहेंगी
लेकिन होने की सीमाएं हैं
लेकिन सीमाएं किसी अन्य के लिए
प्रस्थान बिंदु भी
कोई सफ़र आश्चर्य की तरह नहीं
सिर्फ़ दूसरों के लिए
अनुभूतियां अलग हैं
हमारी अनुभूति अलग