मैं मरा नहीं हूँ,
मैं नहीं मरूँगा,
इतना मैं जानता हूँ,
पर इस अकेला कर देने वाले विश्वास को ले कर
मैं क्या करूँगा,
यह मैं नहीं जानता।
क्यों तुम ने यह विश्वास दिया?
क्यों उस का साझा किया?
तुम भी
जो मरे नहीं,
मरोगे नहीं;
तुम अब करोगे क्या-
क्या तुम जानते हो?
गुरदासपुर, 13 जुलाई, 1968