जाने कब बौराए आम टिकोरे लेंगे-
जाने कब नीम गाछ में कोंपल फूटेगी?
बचे-खुचे पात खड़खड़ाते पीपल के,
शाखों में फूल कहाँ आए सेमल के;
साँझ के पखेरू परवश फलकें मूँद रहे-
पंक्ति यह अंधेरे की जाने कब टूटेगी?
आए द्वारों पर तो धूल उड़ाते झौंके,
जाने-पहचाने घर जैसे कुत्ता भौंके;
हाथों में मेरे दो नन्हे पतवार बंधु
घाटों से नौका पर जाने कब छूटेगी?
सूनी माँगें, सपने सूने, गोदें सूनीं,
होती ये रात चौगुनी, पीड़ा दिन-दूनी;
कोलाहल में डूबी मौसम की शहनाई
ऋतु-कन्या दुल्हन बन, जाने कब रूठेगी?
जाने कब बौराए आम टिकोरे लेंगे-
नीम गाछ में कोंपल जाने कब फूटेगी?