मौसम ने गीत रचे प्यार के
जमुना के तीर बजी बंसरी
मादल पर मौन बजे द्वार के।
एक अकेली राधा साँवरी
इतने सारे बन्धन गाँव के
मन तो मिलने को आतुर हुआ
बरज रहे, पर बिछुए पाँव के।
फिर फूले फूल ये मदार के
मन ही मन घुल-घुलकर कट गए
ये दिन थे सुख के, सिंगार के।
आज सजाऊँ क्वाँरी देह मैं
ले आओ जामुन की कोंपलें
यह सारा धन तुमको सौंप दूँ
देख-देखकर पलाश-वन जलें ।
यौवन के दिन मिले उधार के
बाँध सकोगे क्या भुजपाश में ?
पारे हैं पारे ये थार के !
साखू की घनी-घनी छाँह में
आओ बैठें सूखे पात पर
अधरों से अधरों की प्यास हर
पल भर हँस लें मन की बात पर ।
क़िस्से बासन्ती मनुहार के
जानें ये मंजरियाँ आम की
जानेंगे फूल ये बहार के ।
मौसम ने गीत रचे प्यार के
जमुना के तीर बजी बंसरी
मादल पर मौन बजे द्वार के ।