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जिंदगी के रास्ते पर चल रही हूँ / रंजना वर्मा

ज़िन्दगी के रास्ते पर चल रही हूँ
मैं समय के रूप में ही ढल रही हूँ

मुफ़लिसी में भी जो बच्चों को सहेजे
मैं वही ममता भरा आँचल रही हूँ

प्यास जो बेकल जमीं की है बुझाती
आसमानों में वही बादल रही हूँ

पेट मे है भूख बन कर खौलती जो
शांत करने को उसी को जल रही हूँ

बन वफ़ा की एक मूरत हूँ ढली मैं
इश्क़ की आँखों में बन काजल रही हूँ

बेबसी के नाग हैं तन से लिपटते
उन सभी के वास्ते सन्दल रही हूँ

जो नयी उम्मीद ले कर आँख खोले
मैं वही आगत सुहाना कल रही हूँ