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जिए के जड़ी / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

जब तक
ई महल नै ढ़हतो,
तों जे झोपड़ी में हा
झोपड़ियो नै रहतो
ई लें हम कहऽ हियों,
चलो,
हम लंका डहऽ हियो
खाली तों सब
जे छोरे-छोरे छुटल हा
सुतरी सन बँटै पड़तो,
चाहे कांटा मिलो
या रोड़ा
राह से नै हँटै पड़तो
तब देखो तमासा,
कि तोहर
नै पूरो हो अभिलाषा!
तोरा जिऐ के
इहे जड़ी हो,
ओकरा से लड़ै पड़तो
जे तोरा से बड़ी हो।