हालांकि खत्म कर दी थी मैंने सारी की सारी संभावनाएं विकास की मिटा दी थी जिन्दगी की हर पहचान बंद करके दरवाजे, खिड़कियां, रोशनदान किन्तु दो दिन में ही अंकुर गए भींगे बिखरे बूंट छोड़ गया था मैं जिन्हें सड़ने और बर्बाद होने के लिए.