प्राणों में क्यों पीड़ा बसती?
आँखों में आशा रहती?
युग-युग का अरमान लिए क्यों
आँसू की सरिता बहती?
पा संकेत किसी का प्रतिपल
साँसें भाग रहीं नादान।
इसी तरह जीवन के क्रम का
क्यों होता जाता अवसान।
अन्वेषण का दीप जलाए
बढ़ा जा रहा मैं किस ओर?
आहों का संबल देकर क्यों
क्षुब्ध समीर रहा झकझोर?
-1934 ई.