बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
जिदना मन पंछी उड़ जानैं,
डरौ पींजरा रानैं।
भाई ना जै हैं बन्द ना जैहें।
हँस अकेला जानें।
ई तन भीतर दस व्दारे हैं
की हो के कड़ जाने।
कैवे खों हो जै है ईसुर।
एैसे हते फलाने।
जिदना मन पंछी उड़ जानैं,
डरौ पींजरा रानैं।
भाई ना जै हैं बन्द ना जैहें।
हँस अकेला जानें।
ई तन भीतर दस व्दारे हैं
की हो के कड़ जाने।
कैवे खों हो जै है ईसुर।
एैसे हते फलाने।