हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जिद्दिन लाडो तेरा जनम हुआ है जनम हुआ है
हुई है बजर की रात
पहरे वाले लाडो सो गए लग गए चन्दन किवाड़
टूटे खटोले तेरी अम्मा वो पौढ़े बाबल गहर गम्भीर
गुड़ की पात तेरी अम्मा वह पीवै टका भी खरचा न जाय
सौ सठ दिवले बिटिया बाल धरे हैं तो भी गहन अंधेर
जिस दिन लल्ला तेरा जनम हुआ है हुई है स्वर्ण की रात
सूतो के पलंग लल्ला अम्मा भी पौढ़े सुरभि का घृत मंगाय
बूरे की पात तेरी अम्मा तो पीवै बाबल लुटावै दाम
एक दिवला रे लल्ला बाल धरा है चारों ही खूंट उजाला
जिद्दिन लल्ला तेरा जन्म हुआ है हुई स्वर्ण की रात