जिनके नहीं होने से
कुछ नहीं हुआ था
और लगभग हर माँ के मुँह से
दबी-सी चीख़ निकलने के बाद
सब कुछ हो गया था
बिल्कुल सामान्य ....
माथे पर शिकन के बदले
पसर गई थी एक निश्चिन्तता
हर किसी के ....
कि चलो जो हुआ अच्छा हुआ ....
जैसे कोई बड़ी बात नहीं
कि जैसे यह तो होना ही था
जैसे कि छोड़ो इन बातों को
अपना काम देखो ....
रसोई से निकलने लगा था धुआँ
रोटी भी पकने लगी थी
ठीक उसी दिन से हर घर में
और हर अकुलाते पेट को
मिल गई थी तृप्ति
मुँह को मिल गई थी डकार की फुरसत
खस्सी के लिए आज भी
झुक गया था
पीपल का बड़ा सा पेड़
और अपने पोते के लिए
घोड़ा बन गया था दादा ....
कहीं कुछ हुआ था तो यही
कि घर में बकरी ने
दो मरी हुई पाठियाँ जनी थीं
और सौभाग्यवती गाय की आँखों से
निकलते आँसू को
आँखों की ख़राबी समझ रहा था
हर कोई ....
कहीं कुछ हुआ था तो यही
कि धरती की कोख का बीज
ख़त्म कर दिया गया था
उगने के पहले.....
और बाँझ होने के डर से त्रस्त हो
वह रो रही थी
पर हर कोई समझ रहा था उन्हें
ओस की चन्द बून्दें ....