(राग नारायणी-ताल त्रिताल)
जिनके परस-दरस-सुमिरन तें महापाप सब मिटैं तुरंत।
सहज उदार-सुभाव कर रहे जग-कल्यान नित्य वे संत॥
फैल रही जिन तें सब जग में निर्मल भगवत्-ज्योति अपार।
सकल ताप-तम हर, करती सो उज्ज्वल भगति-ग्यान-विस्तार॥
(राग नारायणी-ताल त्रिताल)
जिनके परस-दरस-सुमिरन तें महापाप सब मिटैं तुरंत।
सहज उदार-सुभाव कर रहे जग-कल्यान नित्य वे संत॥
फैल रही जिन तें सब जग में निर्मल भगवत्-ज्योति अपार।
सकल ताप-तम हर, करती सो उज्ज्वल भगति-ग्यान-विस्तार॥