जिनगीकेँ जीव कोना बड़का सबाल भेल
सबतरि विचारवान लोकक अकाल भेल
विकृतिये संस्कृति बनि संस्थापित भेल आइ
मनुजक सन्तान जेना सबतरि बेहाल भेल
कुपथ छोड़ि सुपथहिकेँ उचित पंथ कहबा पर
अपनहि समाङसँ छी अपने हलाल भेल
मानवकेँ मानव धकिअयबामे लागल अछि
हाय-हाय लोक लेल लोके अछि काल भेल
पुरुषाकेँ अरजल धन भसिआयल जाय रहल
सोझहिँमे डूबि रहल तकरे मलाल भेल
आडम्बर करबालय कर्जा पर कर्जा लय
बाहरसँ खनहन आ भीतर कंगाल भेल
कहबा लय हाथक थिक मैल पाँच-सात लाख
आनक धन हड़पयमे लोक फर्दबाल भेल
नीतिए, अनीति बनल पाप कर्म धर्म बनल
अन्याये न्यायक पद पाबि कय नेहाल भेल
स्वच्छताक खाल ओढ़ि अगबे बैमान फड़ल
तेँ ने अछि देश आ समाजक ई हाल भेल
सामाजिक सम-रसता रस विहीन बनल सगर
ताहि रसक बीच जाति-पाँतिक देबाल भेल
पसरल आतंक, बढ़ल द्वेष-भाव अपनहिमे
छोटछीन बातहुपर बड़का बबाल भेल
कोन राग-ताल भेल, पूर्ण रंग-ताल भेल
देशकेर दशा-दिशा ताले बेताल भेल
मानव सब रूप बदलि दानव बनि लूटि रहल
दाव-पेँचकर बीच बुधुआ दलाल भेल
त्यागी बलिदानीकेँ आइ बिसरि गेल देश
अहिंसाक भूमि आब हिंसासँ लाल भेल
चारिम पन बीति रहल चित्त भेल व्यथित अपन
सोचब कतेक आब जीवन जपाल भेल