जिन्दगी
से पीछे छूटती तारीखें
गीली रेत पर पैरों के निशान सी
छोड़ देती है कुछ यादें।
यादें...
जो बिसरती जाती है कुछ
समय चक्र के चलते,
कुछ
बड़ी घटनाओं के तले,
और कुछ
मजबूरन मिटा देता है
आदमी
अंजाम न दे पाने पर
पर फिर भी
चहरे की झुरियों को बटोरे
गठरी सा पड़ा होता है वह
चारपाई पर जब
एक पहाड़ का
अहसास करता है,
छोटी बड़ी, खट्टी मीठी
यादों का पहाड़
जिन्दगी का पूरा सफ़र
यादों का काफिला
संग संग
शुरूआत से खात्मे तक