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जिन्दगी का ह / मनोज भावुक

बोल रे मन बोल
जिन्दगी का ह जिन्दगी का ह।

आरजू मूअल, लोर बन के गम आँख से चूअल
आस के उपवन, बन गइल पतझड़, फूल-पतई सब डाल से टूटल
साध-सपना के दास्तां इहे, मर के भी हर बार
मन के अंगना में इंतजारी फिर बा बसंते के, बा बसंते के
इक नया सूरज खुद उगावे के, खुद उगावे के
तब इ जाने के रोशनी का ह जिन्दगी का ह जिन्दगी का ह।

मन त भटकेला, रोज भटकेला, उम्र भर अइसे
अपने दरिया में प्यास से तड़पे इक लहर जइसे
हाय रे उलझन, एगो सुलझे तब, फिर नया उलझन, फिर नया उलझन
फिर भी आँखिन में ख्वाब के मोती, चाँद के चाहत
काश मुठ्ठी में चाँद आ जाए, चाँद आ जाए
तब इ जाने के चांदनी का ह जिन्दगी का ह जिन्दगी का ह।

लोर में देखलीं, चाँद के डूबल, रात मुरझाइल
पास तन्हाई, दूर तन्हाई, आसमां खामोश, फूल कुम्हिलाइल
जिन्दगी जइसे मौत के मूरत, वक्त के सूरत मौत से बदतर
फिर भी धड़कन में आस के संगीत, जिन्दगी के गीत

जिन्दगी के राग, गम के मौसम में, मन से गावे के
तब ई जाने के रागिनी का ह जिन्दगी का ह जिन्दगी का ह।