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जिन्दगी की शाम / विमल राजस्थानी

ढलने ही वाली है अब यह शाम जिन्दगी की
छलने ही वाली है अब यह शाम जिन्दगी की

पी जायेंगी रौनक को प्यासी चिता की लपटें
खुशबूओं से मोअत्तर गुलफाम जिन्दगी की

शातिर थे सारे दुश्मन, कमजोर मैं अकेला
उफ भी नहीं की, हँसकर ही वार उनका झेला

बूढ़े-बुजुर्ग कहते-इंसाफ ‘उसके’ घर है
फिर कें हुई नीलामी सरेआम जिंदगी की

मैंने कभी किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा
जितना भी हो सका था, बिगड़े को ही सँवारा

गुजरेगा रास्तों से जिस दिन मेरा ज़नाज़ा
बौछार उस पै होगी बाअदब बन्दगी की

मिट्टी बलाएँ लेगी गुलफाम जिंदगी की
ढलने ही वाली है अब यह शाम जिन्दगी की

इंसाफ ‘उसके’ घर है तो लाश अपनी काँधे-
लादे फिरेंगे दुश्मन बदनाम जिंदगी की